
बिहार की सियासत में इस बार न सिर्फ NDA और INDIA ब्लॉक आमने-सामने होंगे, बल्कि AIMIM का ‘थर्ड फ्रंट’ भी पूरे तेवर में मैदान में उतरने को तैयार है। असदुद्दीन ओवैसी ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी।
अब सवाल उठता है — “क्या 17% मुस्लिम वोट बिहार का किंग बनवाएंगे या किंगमेकर ही रहेंगे?”
मुस्लिम वोट: बिहार की राजनीति का ‘साइलेंट बटन’ या ‘पावर बटन’?
बिहार की 243 सीटों में करीब 50 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। किशनगंज (70%), अररिया (42%), कटिहार (38%) जैसे जिलों में मुस्लिम वोट बैंक “रिमोट कंट्रोल” का काम करता है — जो चाहे, जिसे चाहे, कुर्सी दे या गिरा दे।
और ओवैसी को इस रिमोट की बैटरी बदलनी अच्छी तरह आती है।
ओवैसी ने किया था INDIA ब्लॉक में शामिल होने का ऑफर — RJD ने ‘Seen’ कर दिया
AIMIM प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने RJD सुप्रीमो लालू यादव को चिट्ठी लिखकर साथ आने का न्योता दिया था।
लेकिन जवाब नहीं आया।
और जब जवाब न मिले, तो ओवैसी का फॉर्मूला साफ़ होता है — “साथ नहीं दोगे? तो सीट ले जाऊँगा!”
2020 में AIMIM ने कैसे तोड़ा RJD का सपना?
2020 के चुनाव में सीमांचल की 5 सीटें AIMIM ने झटक ली थीं। राघोपुर में तेजस्वी जीत गए, लेकिन सरकार बनाने से चूक गए।
कारण? सीमांचल में ओवैसी की “मिनारें” उठ चुकी थीं। अब 2025 में AIMIM ने सिर्फ 20 नहीं, बल्कि 100 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया है।
सीमांचल: बिहार का ‘मिनी हैदराबाद’?
AIMIM की पूरी स्ट्रैटेजी सीमांचल और कोसी रीजन पर फोकस है। 24 सीटें सीमांचल में- मुस्लिम आबादी: 47%- जातीय समीकरण: 73% पसमांदा, 27% अशराफ।

ओवैसी जानते हैं कि यहां मुद्दा “धर्म” नहीं, “उपेक्षा” है — और यही उनकी स्पीच का पंचलाइन बन चुकी है।
INDIA और NDA दोनों ही ब्लॉक अब कह रहे होंगे — “अबे यार, ये ओवैसी फिर आ गया?”
AIMIM की एंट्री से RJD की “वोट काट” टेंशन बढ़ेगी। NDA को सीमांचल में “नो एंट्री” का बोर्ड दिखेगा और कोई गठबंधन अगर सरकार बनाना चाहे, तो ओवैसी से रिश्ता बनाना ही पड़ेगा। यानी ओवैसी नहीं, इस बार “सेक्युलर स्ट्रेस टेस्ट” का सेंटर बन चुके हैं।
ओवैसी के पास क्या है?
ज़मीनी संगठन- सीमांचल में प्रभाव- पसमांदा मुस्लिमों के मुद्दे- RJD और कांग्रेस से नाराज़गी और खुद का “डर्टी पॉलिटिक्स नहीं करता” वाला स्टाइल।
AIMIM ‘स्पॉइलर’ नहीं, ‘डीलमेकर’ बन सकती है। INDIA गठबंधन अगर AIMIM को हल्के में ले रहा है, तो 2020 की याद दिला देना काफी होगा। और NDA के लिए तो सीमांचल वैसे भी ‘नो फ्लाई जोन’ बना रहेगा।
अब देखना ये है कि क्या ओवैसी सिर्फ मजलिस की आवाज़ बनेंगे या बिहार का सियासी संतुलन भी तय करेंगे?